इत्तेफाक (Part 4)



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#04

#लंचटाइम
मुझे काम में बिजी देखते हुए वो बोली -  रवि आप लंच  करने नहीं आए रहे?
(रवि! वाह तुम्हारे मुंह से ये नाम कितना अच्छा लग रहा है)
रवि? वो फिर बोली
दरअसल मैं आज लंच लाना भूल गया , मैने कहा
कोई बात नहीं मैं लाई हूं आप मेरा कर लीजिएगा,
अरे नहीं नहीं आप जाइए , मैने कहा
मेरे मना करने पर जब वो नहीं मानी तो मैं भी चल दिया उसके साथ ।
कुछ देर बाद
6 बज चुके थे मै बस बाइक की चाबी लेकर निकला ही था कि देखा प्रीतिका ऑटो के लिए खड़ी थी , मैं उसके पास गया।
अरे आप यही है
जी बस ऑटो का इंतजार कर रही हूं
चलिए मैं छोड़ देता हूं आपको ,मैने कहा
अरे नहीं ऑटो आता ही होगा मैं ऑटो से चली जाऊंगी , वह बोली
ये तो नाइंसाफी हो जाएगी प्रीतिका जी , आपने मुझे अपना लंच कराया अब मुझे भी तो आपके लिए कुछ करने दीजिए ।
वो हामी भर के हल्का सा मुस्कुराई ।
फिर मेरी बाइक में बैठ गई ।
कसम से आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूंगा, शाम की ठंडी ठंडी हवा , हवाओं में उड़ते उसके बाल , बाइक के शीशे में मैं उसकी खूबसूरती को साफ देख पा रहा था ।मानो जैसे कोई सपना देख रहा हूं, बस यही दुआ है कि ये सपना कभी ना टूटे।
फिर मैं उसे घर  छोड़ कर  अपने घर चल दिया।
बस ये सिलसिला रोज का हो गया था । हमारा साथ में लंच करना, मेरा उस घर छोड़ना , कभी कभी मैं सुबह उसे लेने भी चला जाता था। किसी खूबसूरत सपने से कम नहीं था ये।
अब लगभग  तीन महीने हो गए थे इस सिलसिले को । हम काफी अच्छे दोस्त बन गए थे । बस अब मैंने सोच लिया था कि उसे अपने दिल की बात बता दूंगा , फिर वो हा बोले या ना ये उसका फैसला होगा पर मैं इस भाव को अब और अपने दिल मै नहीं रख सकता।
 मैंने उसे मैसेज किया।
कल मिल सकते है क्या प्रीत?( मैं उसे प्रीत बुलाता था)
कुछ देर बाद उसका जवाब आया
"हा क्यों नहीं।"
ठीक है कल मिलते है फिर , मैने फिर मैसेज किया
"हांजी। "
गुड नाईट प्रीत!
गुड नाईट!रवि
मैसेज कर मैने फोन रख दिया। बस अब कल का इंतजार है । यही सब सोचते हुए मैं सो गया।

अगले दिन.........



इत्तेफाक । लव स्टोरी

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