तलाकशुदा
short story
तलाकशुदा
घर पहुंची ही थी कि दरवाजे से देखा पड़ोस कि कुछ औरतें मा के साथ बैठी हुई है
अरे आ गई बेटा , मा ने मुझे देखते हुए कहा
"जी मां "
"कैसी हो अनु " , पड़ोस की एक आंटी ने मुझसे पूछा
ठीक हूं आंटी, मैंने कहा
और बता राकेश के साथ कैसा रहा, बात बनी क्या, उन्होंने पूछा
जी , मुझे अजीब लगा वो थोड़ा और फिर उसका एक बेटा भी है
अरे तो तू भी तो तलाकशुदा है ऐसे ही रिश्ते मिलेंगे अब तो तुझे , कोई पहली शादी थोड़ी है दूसरी शादी है तेरी भी तो, आंटी ने जवाब देते हुए कहा
उनकी बात सुन कर मै बस मुस्कुराई और अपने रूम में चली गई पर वहा से भी उनकी बाते साफ सुनाई दे रही थी जो वो मेरी मां से कह रही थी
"दीदी एक तो पहली शादी लव मैरिज और फिर तलाक का ठप्पा भी लगा है मै तो कहती हूं कर दो इसकी शादी समय पर , अव रिश्ते तो ऐसे ही मिलेंगे और फिर कब तक मायके में रहेगी वो "
ये सब सुन कर मै खुद से ही सवाल करने लगी , क्या तलाक इतना बड़ा ठप्पा है मेरे चरित्र पर या हर लडकी पर , जो उसे ऐसे जज किया जाता है जैसे वो कोई इंसान नहीं एक वस्तु हो , क्या ने अपनी जिंदगी के फैसले खुद नहीं ले सकती ।
तभी मा उनसे बोली - "ये तो उसका फैसला है बहन , जो उसे ठीक लगेगा वही करूंगी मै भी तो, और फिर ये भी तो उसका घर है वो चाहे तो पूरी जिंदगी यहां रह सकती है । और हम तो खुश है कि उसने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई वरना कई लडकिया तो ऐसी ही जिंदगी काट देती है"
उनकी बाते सुन कर सारी औरते चुप हो गई थी । उनके जाने के बाद मा मेरे कमरे में आई और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने पूछा , "क्या सोच रही है"
कुछ नहीं , ये कहते हुए में उनकी गोद में सर रख कर लेट गई
इतना मत सोच अनु ये दुनिया ऐसी ही है , जब तू अपने ससुराल में घुट घुट के रह रही थी तब कोई नहीं आया आंसू पोछने ,अपना कंधा देने , और अब तलाक ले कर अलग रह रही हो तो सौ लोग है नाम रखने वाले , पर सच तो ये है बेटा की ना तब किसी को कोई फर्क पड़ता था और ना अब पड़ता है।
इसलिए तुम किसी के बारे में मत सोचो ,
खुद के बारे में सोचो ,खुद के लिए जिओ। - मा ने मुझे समझाते हुए कहा
मैंने बस उन्हें गले लगा लिया।
"जी मां "
"कैसी हो अनु " , पड़ोस की एक आंटी ने मुझसे पूछा
ठीक हूं आंटी, मैंने कहा
और बता राकेश के साथ कैसा रहा, बात बनी क्या, उन्होंने पूछा
जी , मुझे अजीब लगा वो थोड़ा और फिर उसका एक बेटा भी है
अरे तो तू भी तो तलाकशुदा है ऐसे ही रिश्ते मिलेंगे अब तो तुझे , कोई पहली शादी थोड़ी है दूसरी शादी है तेरी भी तो, आंटी ने जवाब देते हुए कहा
उनकी बात सुन कर मै बस मुस्कुराई और अपने रूम में चली गई पर वहा से भी उनकी बाते साफ सुनाई दे रही थी जो वो मेरी मां से कह रही थी
"दीदी एक तो पहली शादी लव मैरिज और फिर तलाक का ठप्पा भी लगा है मै तो कहती हूं कर दो इसकी शादी समय पर , अव रिश्ते तो ऐसे ही मिलेंगे और फिर कब तक मायके में रहेगी वो "
ये सब सुन कर मै खुद से ही सवाल करने लगी , क्या तलाक इतना बड़ा ठप्पा है मेरे चरित्र पर या हर लडकी पर , जो उसे ऐसे जज किया जाता है जैसे वो कोई इंसान नहीं एक वस्तु हो , क्या ने अपनी जिंदगी के फैसले खुद नहीं ले सकती ।
तभी मा उनसे बोली - "ये तो उसका फैसला है बहन , जो उसे ठीक लगेगा वही करूंगी मै भी तो, और फिर ये भी तो उसका घर है वो चाहे तो पूरी जिंदगी यहां रह सकती है । और हम तो खुश है कि उसने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई वरना कई लडकिया तो ऐसी ही जिंदगी काट देती है"
उनकी बाते सुन कर सारी औरते चुप हो गई थी । उनके जाने के बाद मा मेरे कमरे में आई और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने पूछा , "क्या सोच रही है"
कुछ नहीं , ये कहते हुए में उनकी गोद में सर रख कर लेट गई
इतना मत सोच अनु ये दुनिया ऐसी ही है , जब तू अपने ससुराल में घुट घुट के रह रही थी तब कोई नहीं आया आंसू पोछने ,अपना कंधा देने , और अब तलाक ले कर अलग रह रही हो तो सौ लोग है नाम रखने वाले , पर सच तो ये है बेटा की ना तब किसी को कोई फर्क पड़ता था और ना अब पड़ता है।
इसलिए तुम किसी के बारे में मत सोचो ,
खुद के बारे में सोचो ,खुद के लिए जिओ। - मा ने मुझे समझाते हुए कहा
मैंने बस उन्हें गले लगा लिया।
मा की बाते सुन मै बस मन ही मन भगवान का शुक्रिया कर रही थी कि भले ही उसने मुझे एक अच्छी शादीशुदा जिंदगी ना दी हो पर एक मा दी है जो हर हालातो में अपनी बेटी के साथ खड़ी रही है जिन्हे हमेशा अपनी बेटी पर भरोसा रहा है , जिन्हे समाज की बातो से ज्यादा अपनी बेटी की खुशी प्यारी है ।
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